प्रकृति के निकट: दुनिया से परे

April 14, 2017 0 comments ISMAANA Admin Categories Patrika Q1 2017

कितने मीलों भटक-भटक में तुमसे मिलने आया हूँ,

ठोकर सालों खा-खा कर अब जो चाह था वो पाया हूँ,

मेरा तन्हा थका मुसाफिर मन तेरी पेशगी में लाया हूँ.

कितने मीलों भटक-भटक में तुमसे मिलने आया हूँ,

 

है भीतर का संवेग जिसे प्यार ये दुनिया कहती है,

सुना है इसी आवेश में संसार की सृष्टि रहती है,

अब जब चंद मिनटों में ही गुज़र जाते ज़माने हैं,

तुमसे तो मेरे राग पुराने हैं, जन्मों के विद्वेष मिटने हैं,

 

थोड़ी सी धूप सुनहरी भर लूं मन के अंधियारे में,

कुछ पवन चले बहकी महकी मेरे श्वासों के गलियारे में,

तब लगे की प्राण अभी भी बाकी हैं,

इस पोले अस्थि-पंजर में इंसान अभी भी बाकी है,

 

पहले आदमी से अब खुद ही से भागता हुआ मैं,

तुम संग कुछ आनंद मधुर अद्भुत सा पाता हूँ,

अब यहाँ मुझे न भूख लगे न प्यास लगे,

तुम संग दिन चढ़े उत्सव, सांझ ढले त्यौहार लगे,

 

हे शक्ति के अटल पुंज, इस राख का तुमसे विनय है,

सम्पन्नता का ओजस निराधार जीवन के क्षय से फूट पड़े,

और पूर्ण विलय हो तेरा मेरा,

इन प्राणों के समापन से पहले.


About the author: Tushar Gupta self-taught writer and is passionate about Hindi poetry. He graduated from Indian School of Mines in 2012 with B.Tech in Mining Engineering and worked in the industry for a couple of years. He then graduated with Masters of Science degree from University of Alaska Fairbanks in 2016.